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कर्म, अकर्म, विकर्म किसके लिए हैं| | आचार्य प्रशांत, अवधूत गीता पर (2020)

2023-11-09 7 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br />पार से उपहार शिविर, 15.02.20, ऋषिकेश, उत्तराखंड, भारत <br /><br />प्रसंग: <br />पुंसोऽयुक्तस्य नानार्थो भ्रमः स गुणदोषभाक् ।<br />कर्माकर्मविकर्मेति गुणदोषधियो भिदा ।।<br /><br />भावार्थ: जिस पुरुष का मन अशांत है, असंयत है, उसी को पागल की तरह अनेको वस्तुएँ मालुम पड़ती हैं; वास्तव में यह सब चित्त का भ्रम ही है । नानात्व का भ्रम हो जाने पर ही ‘यह गुण है’‘यह दोष है’ इस प्रकार की कल्पना करनी पड़ती है । जिसकी बुद्धि में गुण और दोष का भेद बैठ गया है, जो दृढ़मूल हो गया है उसी के लिए कर्म, अकर्म और विकर्म के भेद का प्रतिपादन हुआ है ।<br />~अवधूत गीता (अध्याय १, श्लोक ८)<br /><br />~ " बुद्धि में नानात्व का भ्रम हो जाता है " इसका क्या अर्थ है?<br />~ नानात्व दूर कैसे हो?<br />~ मन की अशांति दूर कैसे हो?<br />~ ज्ञान को जीवन में कैसे उतारें?<br />~ नानात्व को पचेड़ा क्यों कहते हैं?<br />~ कर्मों को गौर से देखने पर इतना ज़ोर क्यों है?<br />~ कर्म- अकर्म, विकर्म या निष्काम है, यह जानने पर क्यों इतना ज़ोर है?<br />~ कर्ता परेशान क्यों है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~~~~~~~~~

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